झारखंड में 50 हजार ‘रानी मिस्त्रियों’ ने पुरुषों के वर्चस्व वाले पेशे में गाड़ा झंडा
रांची (आरएनएस)। उसके हाथ जब दीवारों की चिनाई करते हैं तो उसके काम की रफ्तार देखकर लोग दंग रह जाते हैं। जितनी देर में राजमिस्त्री एक दीवार की चिनाई करते हैं उतनी देर में वह दो दीवारों की चिनाई कर चुकी होती है।
नाम है सुनीता देवी। झारखंड के लातेहार जिले के उदयपुरा गांव की रहने वाली और अपने इलाके की मशहूर ‘रानी मिस्त्री’। वह वर्ष 2019 में भारत के राष्ट्रपति के हाथों भारत सरकार की ओर से कामकाजी महिलाओं को प्रदान किए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजी जा चुकी हैं।
दरअसल ईंट-कंक्रीट जोडऩे और प्लास्टर तक के काम में आम तौर पर पुरुषों का वर्चस्व रहा है। उन्हें राज मिस्त्री के नाम से जाना जाता है। लेकिन झारखंड में ऐसी महिलाओं की तादाद करीब 50 हजार है, जिन्होंने राजमिस्त्री के पेशे में खुद को न केवल स्थापित किया है, बल्कि अपनी कार्यकुशलता से हर किसी को चमत्कृत भी किया है।
इन्हें रानी मिस्त्री के नाम से जाना जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक भी इनकी सफलता की कहानियां पहुंची हैं और वह वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए खूंटी जिले की कुछ रानी मिस्त्रियों से बात कर उनका हौसला बढ़ा चुके हैं।
सुनीता बताती हैं कि चार साल पहले उनके गांव उदयपुरा में कार्यरत स्वयं सहायता समूह को स्वच्छ भारत मिशन के तहत एक सौ शौचालय निर्माण कराने का काम सौंपा गया था परंतु राज मिस्त्री के नहीं मिलने या इस छोटे कामों से उनके इनकार करने के कारण उसने खुद औजार संभाल लिया।
जिला प्रशासन की ओर से उन्हें मामूली प्रशिक्षण दिया गया और फिर खुद मिस्त्री बन गई। इसके बाद हम 20-25 महिलाओं ने शौचालय का निर्माण कर दिया। इसके बाद तो फिर इसमें पैसे की कमाई भी होने लगी और आनंद भी आने लगा।
इन रानी मिस्त्रियों पर वल्र्ड बैंक ने हाल में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट में हजारीबाग की एक महिला उर्मिला देवी का जिक्र करते हुए बताया है कि उन्होंने अब तक 1,000 से अधिक शौचालयों का निर्माण किया है।
उर्मिला शौचालय निर्माण के काम के लिए बिहार के चंपारण तक जाकर मिस्त्री का काम कर आई हैं। उनके साथ काम कर रही पूनम देवी ने भी पिछले एक साल में 900 शौचालयों के निर्माण में मिस्त्री का काम किया है।
हजारीबाग की ही एक रानी मिस्त्री निशात जहां कहती हैं कि महिलाएं पुरुषों से किसी तरह कमतर नहीं हैं। जो पुरुष कर सकते हैं वो महिलाएं भी कर सकती हैं और कई बार तो पुरुषों से बेहतर कर सकती हैं। रेजा-मजदूर के रूप में महिलाएं पहले भी निर्माण कार्य में लंबे समय से काम करती आयी हैं। अब उन्हें रानी मिस्त्री के रूप में काम करने का मौका मिला है तो वे यहां भी अपना हुनर और काबिलियत दिखा रही हैं।
निशात के साथ काम करनेवाली उषा ने बताया कि राज मिस्त्री का काम रेजा के काम से बहुत अलग नहीं है, और थोड़े से प्रशिक्षण से कोई भी महिला यह काम कर सकती है। इसमें समय तो उतना ही देना होता है पर आमदनी रेजा की तुलना में अधिक होती है। रेजा की तुलना में रानी मिस्त्री का काम थोड़ी विशेषज्ञता वाला है लेकिन महिलाएं इस काम को नहीं कर सकती, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।
भारत में आम तौर पर राजमिस्त्री का काम मर्दों का मानने की एक धारणा रही है। इन्हें राजमिस्त्री कहा जाता है। पारंपरिक रूप से महिलाएं निर्माण गतिविधियों में सहायकों की भूमिका में रही हैं। वह ईंटे ढोती नजर आती रही हैं, गारे तैयार करती दिखती हैं, और राजमिस्त्रियों के निर्देश पर बाकी के काम करती दिखती रही हैं। लेकिन, झारखंड में महिला मजदूरों ने मिस्त्री के काम में पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ दिया है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, इन महिलाओं ने पहली दफा मिस्त्री के काम में हाथ तब डाला जब स्वच्छ भारत मिशन के तहत बड़ी संख्या में शौचालयों का निर्माण शुरू हुआ। हालांकि, राजमिस्त्रियों में से अधिकतर लोग पलायन कर बड़े शहर जा चुके थे या फिर जो बचे थे उनको शहरों में बनने वाले शौचालयों के लिए काम मिल गया था।
अधिकतर राजमिस्त्रियों को इस काम के लिए मिलने वाली मजदूरी भी कम लगी थी। झारखंड में 50 हजार से अधिक कुशल महिला मिस्त्रियों ने सूबे को खुले में शौच से मुक्त बनाने के अभियान में अपना योगदान दिया है।
गौरतलब है कि झारखंड उन राज्यों में से एक है जिसे स्वच्छ भारत अभियान की योजना बनाने और उसको लागू करने के लिए विश्व बैंक की ओर से तकनीकी मदद (टेक्निकल असिस्टेंस) मिली थी। इस तकनीकी मदद के हिस्से के रूप में विश्व बैंक ने टॉयलेट बनाने के लिए राजमिस्त्रियों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया था और उनमें से कई कार्यक्रमों में महिला मजदूरों ने भी हिस्सा लिया था।
हालांकि, शुरूआत में गांव के लोग, खासतौर पर खुद महिलाएं, इस काम को लेकर अनिच्छुक थीं। कई रानी मिस्त्रियों के परिवार वाले इस काम को सीखने को लेकर उनके खिलाफ खड़े हो गए। पर संघर्ष कर इन रानी मिस्त्रियों ने अपना मुकाम पा ही लिया।
इन महिलाओं ने एक अन्य वर्जना को तोड़ा है। पहले मजदूरी करने के दौरान भी यह महिलाएं अपने गांव से बाहर जाने या बाहर जाकर काम करने की सोच भी नहीं सकती थीं। यह महिलाएं या तो अपने घरेलू कामकाज करती थीं, या फिर खेतों में मजदूरी किया करती थीं।
लेकिन अब परि²श्य बदल गया है। निशात जहां मुस्लिम समुदाय से हैं और ऐसे में उनके लिए परदे से बाहर निकलना भी बड़ी चुनौती थी। लेकिन उन्होंने बाकी महिलाओं के साथ रांची जाकर प्रशिक्षण हासिल किया। विश्व बैंक के हफ्ते भर की अवधि के इस कार्यक्रम में उन्होंने टॉयलेट बनाने की तकनीकी जानकारी हासिल की।
इसके अलावा उन्होंने सोक पिट और ट्विन पिट बनाने की तकनीक भी सीखी। हफ्ते भर के बाद सीनियर राजमिस्त्री के तहत उनको काम करने का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया। अब इन महिलाओं की कमाई निर्माण मजदूरी के दौरान मिलने वाली दिहाड़ी से दोगुनी हो गई है।