जलवायु परिवर्तन का असर उत्तराखंड में हिमालयी भालुओं पर भी पड़ा
देहरादून। जलवायु परिवर्तन का असर उत्तराखंड में हिमालयी भालुओं पर भी पड़ा है। अमूमन सर्दियों में शीत निंद्रा (हाइबरनेशन) में रहने वाले भालू अब शीतकाल में भी पहाड़ी क्षेत्रों में न सिर्फ लगातार दिख रहे, बल्कि इनके हमले भी बढ़े हैं। इसे देखते हुए वन महकमे की ओर से कराए गए प्रारंभिक अध्ययन में बात सामने आई कि इनकी शीत निंद्रा में खलल पड़ा है। स्नोलाइन के ऊपर खिसकने के साथ ही पहाड़ों में कम बर्फबारी को इसकी वजह माना जा रहा है। हालांकि, महकमा इस सबको लेकर गहन वैज्ञानिक अध्ययन कराने जा रहा है। राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग के अनुसार इस क्रम में भालुओं पर रेडियो कॉलर लगाने की अनुमति के लिए केंद्र से आग्रह किया जा रहा है।
उत्तराखंड में गुलदार पहले ही मुसीबत बने है और अब भालू भी जानमाल के खतरे का सबब बन गए है। आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। वर्ष 2000 से सितंबर 2020 तक राज्य में भालू के हमलों में 64 व्यक्तियों की जान गई, जबकि 1631 घायल हुए। मौजूदा वर्ष को ही लें तो जनवरी से सितंबर तक भालू के हमलों में 56 व्यक्ति घायल हुए और तीन की जान गई।
वहीं, गुलदारों ने इसी अवधि में 44 व्यक्तियों को घायल किया और 18 की जान ली और तो और सर्दियों में भी भालुओं की सक्रियता बनी हुई है। इन दिनों भी ये पहाड़ के गांवों, कस्बों के इर्द-गिर्द लगातार नजर आ रहे हैं। असल में पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले काला और भूरा भालू सर्दियों में करीब चार माह तक गुफाओं में सोते हैं। ऐसे में शीतकाल में इनका खतरा न के बराबर रहता है, लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों में स्थिति बदली है। इसके मद्देनजर वन महकमे ने प्रारंभिक पड़ताल की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग के अनुसार प्रारंभिक अध्ययन में ये बात सामने आई कि बर्फबारी कम होने से भालुओं को शीत का अहसास कम हो रहा है। यही वजह है कि ये शीतकाल में हाइबरनेशन में नहीं जा पा रहे। नतीजतन सर्दियों में भी इनकी सक्रियता बनी है और व्यवहार भी आक्रामक हुआ है। ये सब जलवायु परिवर्तन का असर है। हालांकि, वह कहते हैं कि इस सिलसिले में भारतीय वन्यजीव संस्थान से गहन वैज्ञानिक अध्ययन कराने का निर्णय लिया गया है।