
अल्मोड़ा। जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान में ‘भारतीय हिमालयी क्षेत्र–2047 : पर्यावरण संरक्षण और सतत सामाजिक-आर्थिक विकास’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय हिमालयी सम्मेलन जारी है। गुरुवार से शुरू हुए इस सम्मेलन में हिमालयी राज्यों से आए वैज्ञानिक, नीति-निर्माता, शोधकर्ता और विभिन्न संस्थानों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। सम्मेलन का उद्देश्य वर्ष 2047 तक हिमालयी क्षेत्र के लिए साझा और टिकाऊ विकास रोडमैप तैयार करना है। दूसरे दिन की शुरुआत प्लेनरी सत्र–III ‘हिमालयी युवा शोधकर्ता मंच – हिमालय को भविष्य से जोड़ना’ से हुई। इस सत्र की अध्यक्षता पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की संयुक्त सचिव नेमीता प्रसाद ने की और संचालन आईयूसीएन इंडिया के डॉ. यशवीर भटनागर ने किया। आईयूसीएन के अर्चन चटर्जी ने विज्ञान आधारित और बहु-क्षेत्रीय विकास मार्गों की प्रस्तुति दी, जबकि वर्टिवर प्राइवेट लिमिटेड की छाया भांती ने कॉम-बी मॉडल के माध्यम से व्यवहार परिवर्तन और संप्रेषण विज्ञान की भूमिका पर व्याख्यान दिया। विभिन्न राज्यों से आए युवा शोधकर्ताओं ने अपने अनुभव, चुनौतियाँ और अनुसंधान की नवोन्मेषी पद्धतियाँ साझा कीं तथा ‘हिमालयन वॉलेट्स’ जैसी नई भुगतान अवधारणा पर चर्चा की। इसी दिन आयोजित ‘पर्वतीय कृषि का पुनरावलोकन – सतत विकास के मार्ग’ विषयक सत्र की अध्यक्षता वीपीकेएएस के निदेशक लक्ष्मी कांत और सह-अध्यक्षता आईआईएफएसआर के निदेशक सुनील कुमार ने की। सत्र में उच्च मूल्य वाली फल–फसलों, संरक्षित खेती तकनीकों, स्थानीय फसलों के मूल्य संवर्धन, मधुमक्खी पालन और मशरूम उत्पादन जैसे विषयों पर विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। डॉ. रत्ना राय, डॉ. एन.के. हेडाउ, डॉ. अनुराधा दत्ता, डॉ. के.के. मिश्रा और डॉ. आर.के. विश्वकर्मा ने पर्वतीय कृषि में बढ़ती संभावनाओं और चुनौतियों को रेखांकित किया। हेमंत बजैठा ने स्थानीय संसाधनों पर आधारित कृषि–उद्यम मॉडल प्रस्तुत किया। सत्र में डॉ. वी.पी. सिंह, डॉ. एस. बत्रा, डॉ. रविन्द्र जोशी, डॉ. रवि पाठक, प्रो. आर.सी. सुंदरियाल, डॉ. बंदना शाक्य, डॉ. मीराज अंसारी और डॉ. हिमांशु बर्गाली ने भी महत्वपूर्ण सुझाव दिए। सम्मेलन में विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक शोध, स्थानीय समुदायों की भागीदारी और नीतिगत समन्वय को हिमालय के सतत भविष्य के लिए अनिवार्य बताया। तीन दिवसीय यह सम्मेलन 15 नवंबर को संपन्न होगा।




