देवता का फैसला सब मानते हैं आज भी हिमाचल के कई इलाकों में
कुल्लू। देश की आजादी के दशकों बाद भी देवभूमि के कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां देवता का फैसला सब मानते हैं। सैंज घाटी के शांघड गांव में भी देवता शंगचूल महादेव का फैसला सर्वमान्य होता है। शांघड गांव में पुलिस के वर्दी पहनकर प्रवेश पर रोक है। शराब, सिगरेट और चमड़े की वस्तु के साथ यहां आने पर भी मनाही है। यहां के मैदान में किसी भी प्रकार के हथियार या औजार के साथ प्रवेश नहीं किया जा सकता और न ही किसी को ऊंची आवाज में बात करने की इजाजत है।
शांघड में प्राचीन कानून आज भी चलता है। देवता शंगचूल महादेव की सत्ता में यहां न कोई अपशब्द कह सकता है, न लड़ सकता है और न ही ऊंची आवाज में बात कर सकता है। यह सब करने का मतलब देव नियमों का उल्लंघन माना जाता है। परंपरा है कि यहां कोई किसी को तंग न करे। ऊंची जुबान से न बोले और इस भूमि पर कोई सरकारी कर न लगे।
पेड़ों की टहनी तक न काटी जाए। पुलिस इस क्षेत्र में वर्दी पहन कर न आए और न ही यहां कोई भौंऊंरू लामण बोल सकते हैं। देवता के कारकून दवेंद्र शर्मा, रेवती राम पालसरा और बेलीराम राणा ने बताया कि शांघड आपसी भाईचारे की मिसाल है। लोग जागरूक हैं और लड़ाई- झगड़े से दूर रहते है।
मैदान में गंदगी का एक कण नहीं
गांव में गांधीगिरी का पाठ जन्म लेते ही पढ़ाया जाता है। करीब एक हजार आबादी वाले इस गांव की सीमा के अंदर झगड़ा करना निषेध है। गाली-गलौज करना यहां पाप और चोरी करना महापाप माना जाता है। यहां के इष्ट देवता शंगचूल महादेव का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। शंगचुल महादेव का विशाल मैदान करीब 228 बीघा में फैला हुआ है। मैदान में गंदगी का एक कण नहीं दिखता।
मंदिर से मिली क्षेत्र को नई पहचान
शांघड में देवता शंगचुल महादेव का काष्ठकुणी शैली में बना मंदिर हजारों लोगों की श्रद्धा का केंद्र बन गया है। सात वर्ष पहले देवता का पुराना मंदिर आग की भेंट चढ़ गया था। एक साल के भीतर फिर मंदिर का निर्माण किया गया है। रोजाना श्रद्धालु दर्शनों के लिए दूर-दूर से शांघड पहुंचते हैं।