गांगुली के असमंजस ने बढ़ाई भाजपा की परेशानी

सियासी पारी के लिए रजनीकांत की तरह खुद को तैयार नहीं कर पा रहे दादा
पीएम की 7 मार्च की रैली में उनके आने पर अब भी जारी है असमंजस का दौर
तमिलनाडु में रजनी के कारण गड़बड़ाई थी भाजपा की रणनीति
नई दिल्ली(आरएनएस)। क्रिकेट मैदान की पारी के बाद सियासी पारी खेलने में पूर्व क्रिकेटर और बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली के असमंजस ने भाजपा की परेशानी बढ़ा दी है। दरअसल भाजपा ने गांगुली के सहारे विधानसभा चुनाव की वैतरणी पार करने की रणनीति बनाई है, जबकि वह राजनीति के मैदान में बल्लेबाजी के लिए अपना मन नहीं बना पा रहे। पार्टी की ओर से उन्हें पीएम मोदी की सात मार्च की रैली में शामिल होने के लिए मनाने की कोशिशें जारी हैं।
सूत्रों ने बताया कि बीसीसीआई अध्यक्ष बनने के दौरान गांगुली सक्रिय राजनीति में आने के इच्छुक थे। हालांकि बाद में उन्होंने इस संबंध में अंतिम निर्णय नहीं लिया। इस दौरान भाजपा लगातार उनसे मन बनाने का आग्रह करती रही। हालांकि गांगुली अब तक सियासी पारी शुरू करने के लिए अपना मन नहीं बना पाए हैं। पार्टी अब गांगुली को पीएम मोदी की सात मार्च की रैली में शामिल कराने के लिए उन्हें मनाने में जुटी है।
पश्चिम बंगाल भाजपा प्रवक्ता शामिक भट्टïाचार्य ने इस संबंध में कहा कि अंतिम फैसला गांगुली को लेना है। लोग चाहते हैं कि गांगुली पीएम की रैली में आएं। हम उनका स्वागत करेंगे। मगर हमें नहीं पता कि क्या होगा, क्योंकि फैसला उन्हें करना है। क्योंकि उनके साथ स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं भी हैं। जबकि राज्य भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि उन्हें इस संदर्भ में कोई जानकारी नहीं है।
क्या है गांगुली-भाजपा की उलझन?
दरअसल बतौर क्रिकेटर गांगुली की पूरे राज्य में प्रतिष्ठïा है। उन्हें सभी पार्टियां सम्मान देती हैं। फिर राजनीति में आने के बाद प्रचार माध्यमों से होने वाली कमाई पर असर पड़ेगा। इन्हीं परिस्थितियों के कारण बीते लोकसभा चुनाव में वीरेंद्र सहवाग सियासी पारी शुरू करने पर अंतिम फैसला नहीं कर पाए थे। जबकि भाजपा वहां ममता बनर्जी के मुकाबले किसी बड़े चेहरे की तलाश में है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि गांगुली की एंट्री से पार्टी विधानसभा चुनाव में चेहरे के सवाल का जवाब ढूंढ लेगी।
रजनीकांत ने भी गड़बड़ाई थी रणनीति
तमिलनाडु में रजनीकांत ने भी सियासी पारी शुरू करने की जोरदार तैयारियों के बाद राजनीति से दूरी बनाने की घोषणा कर दी थी। तब भाजपा की रणनीति रजनीकांत की पार्टी के साथ गठबंधन कर जयललिता और करुणानिधि की अनुपस्थिति में पहली बार होने जा रहे विधानसभा चुनाव में बाजी मारने की थी। हालांकि रजनीकांत ने बीते साल दिसंबर महीने में स्वास्थ्य कारणों से राजनीतिक पारी नहीं खेलने की घोषणा की। रजनीकांत को भय था कि सक्रिय राजनीति में आने के बाद राज्य में सभी वर्गों का मिलने वाला समर्थन खत्म हो जाएगा।