आर्युवेद के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है : डा0 बिष्ट

देहरादून। जिला चिकित्सालय कोरोनेशन के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ एनएस बिष्ट का कहना है कि कूटविज्ञान, विज्ञान, वेदज्ञान और आधुनिक विज्ञान की बहस में जरूरत का ईलाज पीछे छूटता जा रहा है। इस बहस में अगर पुरातनपंथियों ने स्वाभाविक हठधर्मिता दिखाई है तो प्रगतिवादी भी अपनी नाक के आगे कुछ देख नहीं पा रहा है । यह जंग तब तक चलती रहेगी जब तक की आयुर्वेद का आधुनिकीकरण नहीं हो जाता। अब चूँकि आयुर्वेद के धर्मावलम्बी विज्ञान के साथ तालमेल बिठाने से चूक रहे है तो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के डॉक्टरों को ही एक कदम ठहर कर आयुर्वेद को अपनी अँगुली का सहारा देना होगा। ऐसा करने के लिए चाहिए बड़ा दिल, सदाशयता और जनहित को व्यक्तिहित से ऊपर उठा कर देखना और रखना। ऐसा इसलिए भी सम्भव है कि विज्ञान जो जनतन्त्र की औख है उसी के द्वारा परहितवाद- सर्वहितवाद सम्भव है क्योकि प्राचीन ज्ञान अपनी सदिच्छा के बावजूद धर्म और संस्कृति विशेष का ही बन कर रहा जाता है। आधुनिकीकरण का सबसे पहला चरण परिधान बदलना है। आयुर्वेद को संस्कृत का अपना पुराना लबादा बदलकर हिन्दी और अंग्रेजी की सरल भाषा में ग्राहय बनाना होगा। ऐसे में छात्रो और शिक्षको के समय की बचत के साथ-साथ आयुर्वेद में छन्दमुक्त पांडित्यविहीन प्रवाह आने लगेगा- और आयुर्वेद मुक्त चर्चा का विषय बन जायेगा। आयुर्वेद के विद्वान इसे अशुद्ध- आयुर्वेद कहेंगे क्योंकि वे आयुर्वेद को वेदो की श्रेणी में रखते हैं। आयुर्वेद एक उपवेद ही कहलाता है, किन्तु बात जब जनहित की हो- सर्वहित की हो तो आयुर्वेद के आचार्य रूढिवादिता से क्यों बँधे रहे? आयुर्वेद को वेदमुक्त करके प्रगतिशील बनाना ही होगा- क्योकि भारतीय उपमहाद्वीप का बहुसंख्यक वर्ग इसे अपनाये हुए है। हजारों साल से हम लोग एक ही काढ़ा नहीं पिला सकते- वो ही उनकी आस्था और जरूरत का लाभ उठाकर कुछ महीने पहले दैनिक समाचार पत्रों में मेरा एक लेख छपा था। मैंने आयुर्वेद चिकित्सकों को आधुनिक शल्यक विज्ञान के कौशल से नवाजने की जरूरत बताई थी। भारतवर्ष में 12 लाख के करीब एलोपैथी डॉक्टर हैं जिनमें से सिर्फ एक चौथाई ही विशेषज्ञ है यह भी सिर्फ रजिस्टर्ड डॉक्टरों की संख्या है। सक्रिय प्रैक्टिस में 8 लाख के लगभग ही डॉक्टर हैं आयुर्वेद के लगभग 400000 डॉक्टर सक्रिय प्रैक्टिस में है। भारत में सामान्य सर्जरी महंगी और दुष्प्राप्य होती जा रही है कारण है एलोपैथिक सर्जनों का असम अधिक व्यस्त होना चूंकि सर्जरी एक कौशल है उसे आयुर्वेदिक डॉक्टरों को सिखा कर केवल सामान्य सर्जरी पर से सज्जनों का बोझ कम कियाजा सकता है बल्कि आयुर्वेद को आधुनिक बनाने की पहल भी यहीं से शुरू हो सकती है। आयुर्वेद जितना पीछे चलता जाएगा उतना ही कठमुल्लापन उस पर हावी होता जायेगा। जरूरत है आयुर्वेद को नए विज्ञान की रोशनी और शोध में विक्षिप्त होने देने की अन्यथा हर महामारी और आपदा में हमें रूढि़वाद और विज्ञान के झगड़े से दो-चार होना पड़ेगा। मरीज तब सिर्फ ठगा ही महसूस करेगा।