डाक सेवकों के पदों पर मूल निवासियों को मिले वरीयता

देहरादून(आरएनएस)।  उत्तराखंड के डाकघरों में ग्रामीण डाक सेवकों के ज्यादातर पदों बाहरी राज्यों के युवाओं के पदों का चयन और फर्जी प्रमाण पत्र मामला सामने आने के बाद उत्तराखंड के विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संगठनों से जुड़े लोगों में आक्रोश है। लोग सोशल मीडिया समेत तमाम मंचों पर इसका विरोध कर रहे हैं और सरकार से डाक सेवकों की भर्ती प्रक्रिया में बदलाव कर इसमें उत्तराखंड के मूल निवासियों को वरीयता देने की मांग कर रहे हैं। उत्तराखंड परिमंडल में डाक विभाग की सात डिविजन हैं। 2016 तक ग्रामीण डाक सेवकों की भर्ती डिविजन स्तर पर होती थी। तब बाहरी राज्यों के तो दूर डिविजन से बाहर के अभ्यर्थी भी इसमें आवेदन कर पाते थे। लेकिन इसके बाद भर्ती प्रक्रिया में बदलाव कर अखिल भारतीय स्तर पर होने लगी। तब से डाक सेवकों के ज्यादातर पदों पर बाहरी राज्यों के युवाओं का चयन हो रहा है। ऐसे युवाओं का भी चयन हो रहा है, जिनको हिंदी बोलना और लिखना तक नहीं आ रहा है। हिसाब-किताब करना और स्थानीय बोली-भाषा को समझना तो उनके लिए दूर की बात है। पहाड़ की विषम भौगोलिक परिस्थितयां भी उनके लिए चुनौती बन जा रही है, जिसका खामियाजा स्थानीय लोगों को भुगतना पड़ रहा है। बाहरी राज्यों के अभ्यर्थी फर्जी प्रमाण पत्र बनाकर भी नौकरी पा रहे है। डाक विभाग 2023 में 36 ऐसे अभ्यर्थियों को पकड़ चुका है, जिनके दसवीं के प्रमाण पत्र फर्जी थे। इस बार भी छह अभ्यर्थियों के प्रमाण पत्र फर्जी मिलने पर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। डाक विभाग में बाहरी राज्यों के युवाओं के चयन और फर्जी प्रमाण पत्रों का मामला उठने के बाद उत्तराखंड के सामाजिक और राजनीतिक संगठनों से जुड़े लोग आक्रोशित हैं और भर्ती प्रक्रिया में बदलाव की मांग कर रहे हैं।

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