बजट से पहले ही आम आदमी का बिगड़ा बजट, खाने-पीने के सामान के दाम हुए दोगुने

नई दिल्ली।  आम बजट से पहले ही आम आदमी का बजट बिगड़ चुका है। खाने-पीने के समानों के दाम आसमान छू रहे हैं। इस वजह से बीते दिसंबर में खाने-पीने के सामान के दाम में दोगुना से अधिक वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय सांख्यकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर में खाद्य मुद्रास्फीति बढक़र 4.05 प्रतिशत हो गई, जो इससे पिछले महीने 1.87 प्रतिशत थी। खाद्य महंगाई बढऩे से दिसंबर में खुदरा महंगाई में भी तेज इजाफा हुआ है। बता दें 1 फरवरी को बजट पेश हो सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि रिजर्व बैंक महंगाई के ऊंचे स्तर को द?खते हुए एक बार फिर दरों में कटौती के विचार को त्याग सकता है। रिजर्व बैंक के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में सकल मुद्रास्फीति अपने उच्चस्तर पर होगी। उसके बाद से यह नीचे आएगी। इससे पहले पिछले हफ्ते देश के कई अर्थशाश्त्रियों ने खुदरा महंगाई के 5.50 फीसदी से अधिक रहने की आशंका जताई थी और दिसंबर की खुदरा महंगाई उसके करीब रही है।
खाद्य वस्तुओं में अनाज और उसके बने उत्पाद, अंडा, दूध तथा दूध के बने उत्पाद, मसाले तथा तैयार भोजन, स्नैक्स और मिठाई के मामले में महंगाई दर दिसंबर में पिछले महीने के मुकाबले अधिक रही। हालांकि, सब्जियों, फल और तेल एवं वसा की महंगाई दर की रफ्तार में कमी आई।   ईंधन और प्रकाश श्रेणी में मुद्रास्फीति दिसंबर महीने में इससे पूर्व माह के मुकाबले नरम हुई, लेकिन यह अभी भी 10.95 प्रतिशत पर है। नवंबर महीने में यह 13.35 प्रतिशत थी।
रिजर्व बैंक द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में मुख्य रूप से खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़ों पर गौर करता है। ऊंची महंगाई को देखते हुए आरबीआई लगातार नौ मौद्रिक समीक्षा में दरों को स्थिर रखे हुए है। इस बार बजट के बाद रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक होने वाली है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि रिजर्व बैंक साल के मध्य में ब्याज दरों में भी वृद्धि कर सकता है। बार्कलेज इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री राहुल बाजोरिया ने कहा, मुख्य मुद्रास्फीति अधिक है, क्योंकि बढ़ते दूरसंचार शुल्क और उच्च ऊर्जा लागत ने मौद्रिक नीति के संभावित कड़े होने के लिए मंच तैयार किया है। कोटक महिंद्रा बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री उपासना भारद्वाज ने कहा, अब, आरबीआई को मुद्रास्फीति को गंभीरता से देखना होगा। मूल मुद्रास्फीति बहुत उतार-चढ़ाव वाली और ऊंची बनी हुई है और आरबीआई को इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

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