भालू के पित्त की तस्करी के तीन आरोपियों को चार-चार साल का सश्रम कारावास

बागेश्वर(आरएनएस)।   मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट गुंजन सिंह ने भालू के पित्त की तस्करी के मामले में तीन लोगों को दोष सिद्ध पाया। तीनों को चार-चार साल का सश्रम कारावास की सजा सुनाई। साथ ही 50-50 हजार का जुर्माना भी लगाया है। सहायक अभियोजन अधिकारी अशोक कुमार ने बताया कि सात अगस्त 2023 को एसओजी व डीएफओ बागेश्वर उमेश तिवारी को फोन पर मुखबिर ने भालू के पित्त की तस्करी की सूचना मिली। इसके बाद डीएफओ ने वन क्षेत्राधिकारी एसएस करायत व हरीश चंद्र सती को पौड़ीधार के पास निर्माणाधीन रोडवेज वर्कशॉप पर भेजा। लगभग दो बजकर, आठ मिनट पर वन विभाग के सदस्य पहुंचे। यहां से टीम के सदस्य एलओजी टीम के साथ ताकुला मार्ग की तरफ गए। गोल बैंड के पास यात्री शेड के अंदर तीन व्यक्ति बैठे थे। गाड़ी से जब संयुक्त टीम के सदस्य उतरे तो तीनों घबराने लगे। घबराने का कारण पूछने पर उन्होंने भालू के पित्त होने की बात कबूली। इसके बाद रेंजर करायत ने तीनों की तलाशी ली। मनोज उपाध्याय, डिगर सिंह और जगत सिंह के पास से बैगननमुमा पदार्थ बरामद हुआ। पूछताछ करने पर उन्होंने बताया कि हम भालू के पित्त को खलझूनी निवासी अमर सिंह से लाए हैं। इसके बाद पुलिस ने चारों के खिलाफ धारा 9,39ख् 49 क, 51, 56, 57 वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया। इस मामले में अभियोजन ने सात गवाह प्रस्तुत किए। गवाहों को सुनने तथा पत्रावलियों का अवलोकन करने के बाद सीजेएम सिंह ने मनोज उपाध्याय, डीगर सिंह व जगत सिंह को दोषी पाया और चार-चार साल का सश्रम कारावास की सजा सुनाई। अर्थदंड जमा नहीं करने पर छह महीने की अतिरिक्त सजा भी काटनी होगी।

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