इन हालत में सचिवालय के बाहर खड़ीं हैं दर्जनों एंबेसडर कार, नहीं है कोई राजनेता और अफसर इन्हे चलाने को राज़ी

देहरादून : एक दौर था जब शहरों में, लाल और नीली बत्ती लगी एंबेसडर कार जब नजर आती थी तो ये पता चल जाता था कि जिले के कलेक्टर साहब या कप्तान साहब दौरे पर हैं. गांवों में फर्राटे से सड़कों पर दौड़ती नजर आती थी एंबेसडर कार.

1960 से लेकर 1990 के दौर में राजनेताओं और अफसरों की पहली पसंद एंबेसडर कार ही थी. राजनेताओं को भी एंबेसडर कार की सवारी सबसे ज्यादा पसंद आती थी.उस दौर में इस कार की कीमत  14 हजार रखी गयी थी.

जो उस वक्त के हिसाब से बहुत महंगी थी. 1489 CC की यह उस वक्त की सबसे बेहतरीन कार में शामिल थी.राजनेता या अफसर हर कोई इसका दीवाना था शायद इसलिए देशभर में अकेले 16% कार सरकारी सिस्टम में खरीदी जाती थी.

अंतरराष्ट्रीय स्तर की कारों के आगे धीरे-धीरे एंबेसडर की चमक फीकी नजर आने लगी. गाड़ी का एवरेज हो या फिर गाड़ी के सेफ्टी फीचर हर जगह से 90 के दशक के बाद एंबेसडर सरकारी सिस्टम से बाहर होती हुई नजर आई.

एम्बेसडर कार के अब हालात ऐसे हैं कि देहरादून सचिवालय के बाहर दर्जनों कार खड़ी हैं. ये सभी धूल फांक रही हैं. इनके मेंटेनेंस में बहुत पैसा खर्च हो रहा है और अधिकारी भी अब नए जमाने की कार में बैठना पसंद करते हैं.इसी वजह से सरकारी विभागों से इन कारों को अब बाहर कर दिया गया है. इन कारों से पीछा छुड़ाने के लिए इन्हे कबाड़ में किया गया है अब नीलाम.