स्याल्दे बिखौती मेले में आल व गरख धड़े के रणबांकुरों ने भेंटा ओड़ा, झोड़ा चांचरी ने बांधा समा

अल्मोड़ा/द्वाराहाट: ऐतिहासिक स्याल्दे बिखौती कौतिक में शुक्रवार को मुख्य मेले में आल गरख धड़ के नगाड़ों की गर्जना व हुड़के की घमक के साथ वीररस की हुंकार भरी, सरंकार नृत्य ने जहां रणकौशल की बानगी दी। वहीं झोड़ा व चांचरी ने माहौल में अलग ही मिठास घोली। लेकिन मुख्य मेले में बारिश ने मेले की रौनक में पानी फेर दिया, मेलार्थियों के चेहरों में मायूसी छा गई, बारिश के होने के बावजूद भी रणबाकुरों में वही रौनक देखने को मिली, जिसमे रणसिंग की गगनभेदी धुन के बीच आल व गरख धड़े के जोशीले रणबांकुरों ने ओड़ा भेंटने की रस्म निभाई।
ऐतिहासिक स्याल्दे मुख्य मेले में झोड़ा गीत ‘पहाड़ा का दाज्यू झन पिया शराबा, लाल लाल थैली नाम गुलाबा..’ के जरिये नशाखोरी पर प्रहार किया। वहीं मौजूदा वनाग्नि तथा घटती हरियाली के प्रति आगाह करते हुए संदेश दिया- ‘बांज नि काटा लछीमा बांजा नि काटा झोड़ा ने भी समा बांधा। आपको बता दे कि आज के मेले में आल धड़ से मल्ली मिरई, तल्ली मीरई,पिनोली, विजयपुर, भौरा तथा गरख़ धड़ के सलना, धन्यारी,बूंगा, कुई मैनोली, कोटिला, गवाड़,बसेरा, बेधुली, असगोली,सीमलगांव, गुप्तली, छतगुल्ला कुल आल 17 जोड़े नगाड़े निशानों ने ओड़ा भेटने की रस्म अदायगी की।

(रिपोर्ट: मनीष नेगी, द्वाराहाट)