
देहरादून(आरएनएस)। राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने वाहन चोरी के मामले में बीमा कंपनी के इस तर्क को अस्वीकार कर दिया कि उसे देरी से सूचना दी गई। आयोग ने कहा कि केवल सूचना में देरी को आधार बनाकर बीमा दावे को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। जबकि मामले की प्रामाणिकता सिद्ध हो रही है। रोशनाबाद, हरिद्वार निवासी तस्लीम का टाटा ऐस वाहन 14 अप्रैल 2014 को चोरी हो गया था। जिसका बीमा नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से 17,184 रुपये का प्रीमियम देकर 22 फरवरी 2014 से 22 फरवरी 2015 के लिए किया था। यह वाहन टाटा मोटर्स फाइनेंस लिमिटेड से फाइनेंस किया गया था। उन्होंने इसकी रिपोर्ट पुलिस के साथ ही बीमा और फाइनेंस कंपनी को दी थी। पुलिस वाहन नहीं ढूंढ पाई और अदालत में फाइनल रिपोर्ट लगा दी। फिर भी तस्लीम को बीमा कंपनी से दावा राशि नहीं दी। बाद में जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत की गई। आयोग ने बीमा कंपनी को 1,83,768 का भुगतान छह प्रतिशत प्रति वर्ष साधारण ब्याज की दर से देने के साथ ही पांच हजार रुपये वाद व्यय देने के आदेश दिए। इसके खिलाफ बीमा और फाइनेंस कंपनी ने दो अपील राज्य आयोग में दर्ज की। राज्य आयोग में बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि उसे सूचना देरी से दी गई, जो बीमा शर्तों का उल्लंघन है। आयोग ने इसे गलत मानते हुए कहा कि बीमा दावे को इस आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता। वहीं, फाइनेंस कंपनी ने तस्लीम पर 93,584 रुपया बकाया होने का तर्क दिया। राज्य आयोग ने अपने अंतिम निर्णय में कहा कि इस तरह से दावों को खारिज करने से पॉलिसीधारकों का बीमा उद्योग पर से विश्वास खत्म हो जाएगा। इसलिए बीमा कंपनी के संबंध में जिला आयोग के फैसले का बरकरार रखा। साथ ही बीमा दावे से मिलने वाली राशि में से 93,584 रुपये शिकायत दर्ज करने की तिथि से 6 प्रतिशत प्रति वर्ष के ब्याज के साथ टाटा मोटर्स फाइनेंस लिमिटेड को भुगतान करने के आदेश दिए।