नहीं जगमगा सके उत्तराखण्ड के गांव
देहरादून। टिहरी में जब बांध बना तो इसमें सबसे बड़ा योगदान स्थानीय व्यक्तियों का रहा। उन्होंने अपने गांव, घर, खेत, खलिहान सब इस बांध के नाम कर दिए। उम्मीद जताई गई कि उनके इस योगदान से पर्वतीय क्षेत्रों के गांव बिजली से जगमगा उठेंगे। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद परिसंपत्तियों का बटवारा हुआ तो लगा कि उत्तराखंड को उसके हक की बिजली मिलेगी, लेकिन उत्तर प्रदेश ने इससे हाथ खींच लिए। प्रदेश में आई सरकारों ने इस मामले में कई बार उत्तर प्रदेश सरकार से बात की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड, दोनों राज्यों में भाजपा की सरकारें आई तो कुछ आशा जगी। कई दौर की बैठकों के बावजूद बात यहां भी आश्वासन से आगे नहीं बढ़ पाई है। स्थिति यह है कि उत्तराखंड को परियोजना क्षेत्र का राज्य होने के नाते अभी भी केवल 12.5 प्रतिशत रायल्टी ही मिल रही है।
सदानीरा नदियों गंगा व यमुना के प्रदेश उत्तराखंड में पेयजल की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। इसे देखते हुए पेयजल के उपयोग में मितव्ययता के प्रति आमजन को जागरूक करने की मुहिमम चलाई गई। जल ही जीवन है, जल संचय, जीवन संचय आदि तमाम स्लोगन जारी कर आमजन को जागरूक करने का प्रयास हुआ। साथ ही वाटर मीटर लगाने का भी निर्णय लिया गया। मंशा यह कि जो पानी का जितना इस्तेमाल करेगा, उसे उतना ही भुगतान भी करना होगा। वर्ष 2016 में इस योजना पर काम शुरू किया गया। इसके लिए बाकायदा टेंडर तक आमंत्रित किए गए। बताया गया कि मीटर में डाटा डिजिटल रिकार्ड के रूप में रखा जाएगा। मीटर की रिकार्डिंग के लिए घर के भीतर नहीं जाना होगा और दूर से ही रिमोट के जरिये सारी जानकारी मिल जाएगी। एशियन डेवलपमेंट बैंक के सहयोग से लगाए जाने वाले ये मीटर आज तक नहीं लग पाए हैं।