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ज्योतिषीय दृष्टि से विशेष है इस बार हरियाली तीज?

आरएनएस सोलन (बद्दी) : तीज वास्तव में यह एक ऐसा पर्व है जिसमें करवा चौथ जैसा श्रृंगार का वातावरण है, महिला मुक्ति सा एहसास है, राखी एवं भाई दूज जैसा पारिवारिक संगम है ,करवा चौथ जैसा समर्पण है, मालपुओं व घेवर से दिवाली जैसी खुशबू है, होली सी उमंग है, प्रकृति की पूर्ण अनुकंपा है। मान्यता है इस दिन भगवान शिव तथा माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। इसी लिए करवा चौथ की भांति इस दिन भी महिलाएं पति की दीर्घायु एवं सुखमय गृहस्थ जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और पार्वती जी को श्रृंगार की हरी वस्तुएं अर्पित करती हैं। इन दिनों चारों तरफ हरियाली छाई होती है


ज्योतिष आचार्य मदन गुप्ता ने बताया कि शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 10 अगस्त ,मंगलवार की सायं 6 बजे आरंभ हो जाएगी और 11 तारीख बुधवार की शाम 4 बज कर 53 मिनट तक रहेगी परंतु उदया तिथि के अनुसार हरियाली तीज का व्रत 11 अगस्त को ही रखा जाएगा । श्रावणी शुक्ल मधुस्त्रवा ,हरियाली या सिंधारा तीज 11 अगस्त , को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र और बुधवार को पड़ रही है जो इस बार अत्यंत शुभ है। इसे श्रावणी तीज भी कहा जाता है। इस बार 11 अगस्त को शिव योग सायंकाल 6 बजकर 30 मिनट तक है जिसमें तीज का व्रत रखना अधिक सार्थक रहेगा। इस दिन रवि योग भी प्रातः 9 बजकर 30 बजे से लेकर पूरे दिन रहेगा। यही नहीं, इस दिन विजय मुहूर्त भी दोपहर ढाई बजे से साढ़े तीन बजे तक रहेगा। यदि आप राहू काल का विचार करते हैं तो यह दोपहर साढ़े 12 बजे से लेकर 2 बजे तक रहेगा।

क्या है पारिवारिक ,सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व ?
आचार्य मदन गुप्ता ने बताया कि मान्यता है कि मां पार्वती ने 107 जन्म लिए। कठोर तप के बाद 108 वें जन्म पर उन्हें भगवान शिव ने पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से इस व्रत का चलन हुआ। इस दिन जो सुहागन महिलाएं, 16 श्रृंगार करके, भगवान शिव एवं पार्वती की पूजा करती हैं, उनके सुहाग की रक्षा होती है। इस दिन सुहागिनें मेहंदी लगाकर झूलों पर सावन का आनंद मनाती हैं। प्रकृति धरती पर चारों ओर हरियाली की चादर बिछा देती है और मन म्यूर हो उठता है। इसीलिए हाथों पर हरी मेंहदी लगाना प्रकृति से जुड़ने की अनुभूति है जो सुख समद्धि का प्रतीक है। इसके बाद वही मेंहदी लाल हो उठती है जो सुहाग, हर्षोल्लास एवं सौंदर्य का प्रतिनिधित्व करता है।

जिस लड़की के ब्याह के बाद पहला सावन आता है, उसे ससुराल में नहीं रखा जाता । इसका कारण यह भी था कि नवविवाहिता अपने मां-बाप से ससुराल में आ रही कठिनाइयों, खटटे् मीठे अनुभवों को सखी सहेलियों के साथ बांट सके और मन हल्का करने के अलावा कठिनाईयों का समाधान भी खोजा जा सके। इसी लिए नवविवाहित पुत्री की ससुराल से सिंधारा आता है। और ऐसी ही समग्री का आदान प्रदान किया जाता है ताकि संबंध और मधुर हों और रिश्तेदारी प्रगाढ़ हो। इसमें उसके लिए साड़ियां, सौंदर्य प्रसाधन, सुहाग की चूड़ियां व संबंधित सामान के अलावा उसके भाई बहनों के लिए आयु के अनुसार कपड़े , मिष्ठान तथा उसकी आवश्यकतानुसार गीफट भेजे जाते हैं। आज जब छोटी छोटी बातों के कारण तलाक तक की नोबत आ जाती है तो वर्तमान युग में तीज का त्योहार मात्र औपचारिकता निभाने की बजाए उसकी भावना और दिल से मनाना अधिक सार्थक होगा।


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