ग्लूकोमा के लक्षण, बचाव और उपचार की जानकारी दी

ऋषिकेश। हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट के नेत्र रोग विभाग की ओर से ग्लूकोमा जागरूकता साप्ताहिक अभियान चलाया गया। इसमें लोगों को ग्लूकोमा के लक्षण, बचाव और उपचार की जानकारी दी गई। नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ. रेनू धस्माना ने लोगों और रोगियों से ग्लूकोमा की वक्त पर जांच कराने की अपील की। शुक्रवार को नेत्र रोग विभाग की ओर से आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में ऑप्टोमेट्री के छात्र-छात्राओं ने नाटक के माध्यम से काला मोतियाबिंद के लक्षण और इसकी पहचान की जानकारी दी। साथ ही लक्षण आने पर चिकित्सक की सलाह अनुसार इलाज के लिए प्रेरित किया। छात्र-छात्राओं ने पोस्टर प्रदर्शनी से भी अस्पताल की ओपीडी में आने वाले लोगों को मोतियाबिंद के विषय में जानकारी दी। नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ.रेनू धस्माना ने कहा कि ग्लूकोमा को काला मोतिया भी कहते हैं। काला मोतिया के अधिकतर मामलों में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते न ही दर्द होता है, इसलिए यह दृष्टिहीनता का एक प्रमुख कारण भी माना जाता है। काला मोतिया में हमारी आंखों की ऑप्टिक नर्व पर दबाव पड़ता है जिससे उन्हें काफी नुकसान पहुंचता है। उन्होंने बताया परिवार में यदि किसी को ग्लूकोमा है तो अन्य सदस्यों में इसके होने की आशंका ज्यादा होती है। डॉ. हर्ष बहादुर ने कहा कि लोगों को 40 की उम्र पार करते ही साल में एक बार अपनी आंखों का चेकअप नेत्र विशेषज्ञ से करवाना चाहिए। ग्लूकोमा विशेषज्ञ डॉ. नीलम वर्मा ने कहा कि यदि परिवार में कोई भी सदस्य ग्लूकोमा से पीड़ित नहीं है, तब भी अपनी आंखों का चेकअप हर दो साल में एक बार जरूर करवाना चाहिए। ग्लूकोमा को जांचने के लिए कोई एक टेस्ट नहीं है, इसलिए भी मुश्किलें आती हैं। ग्लूकोमा को जांचने के लिए कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं। टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर ही ग्लूकोमा की पुष्टि की जाती है। यदि एक बार ग्लूकोमा से आंखों का नुकसान हो गया तो उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। मौके पर डॉ. अमित मैत्रेय, डॉ. सुखदीप बैंस, डॉ. उदित राज शर्मा आदि उपस्थित रहे।


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