
देहरादून (आरएनएस)। फार्मेसी अधिनियम 1948 की धारा 10 के अंतर्गत एजुकेशन रेगुलेशन 1992, 1994 और 2014 के विपरीत कुछ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों द्वारा डी फार्मा व बी फार्मा पाठ्यक्रमों में नियमविरुद्ध प्रवेश दिए जाने के मामले में फार्मेसी काउंसिल उत्तराखंड ने गंभीरता दिखाते हुए सभी संस्थानों को चेतावनी पत्र जारी किया है।
रजिस्ट्रार, फार्मेसी काउंसिल उत्तराखंड के. एस. फर्स्वाण के अनुसार राज्य के कुछ संस्थान ऐसे छात्र-छात्राओं को प्रवेश दे रहे हैं, जो इंटरमीडिएट में विज्ञान संकाय के अनिवार्य विषय—अंग्रेजी, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान और गणित—अलग-अलग उत्तीर्ण नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में विद्यार्थी दो वर्षीय डिप्लोमा या चार वर्षीय डिग्री पूरी करने के बाद जब पंजीकरण के लिए काउंसिल कार्यालय पहुँचते हैं, तो अनिवार्य विषयों में उत्तीर्ण न होने के कारण उनका पंजीकरण नहीं हो पाता। इससे न केवल विद्यार्थियों के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, बल्कि आर्थिक हानि भी होती है।
के. एस. फर्स्वाण ने बताया कि इस प्रकरण में कई विद्यार्थी उच्च न्यायालय नैनीताल में वाद दायर कर चुके हैं, जिससे स्थिति की गंभीरता स्पष्ट होती है। उन्होंने सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया है कि डी फार्मा व बी फार्मा में प्रवेश देते समय विद्यार्थियों के शैक्षिक दस्तावेजों की गहन जांच सुनिश्चित करें और यह सत्यापित करें कि वे विज्ञान संकाय के सभी अनिवार्य विषयों में पृथक-पृथक उत्तीर्ण हैं।
फार्मेसी काउंसिल ने स्पष्ट किया है कि भविष्य में गलत प्रवेश दिए जाने पर संबंधित संस्थान स्वयं जिम्मेदार माने जाएंगे।


