कोल्ड चेन की कमी से दुनिया में तीन अरब लोगों तक कोरोना टीका पहुंचने में हो सकती है देर

गम्पेला, 19 अक्तूबर। गम्पेला बुर्किना फासो का एक छोटा स्थान है, जहां के चिकित्सा केंद्र में पिछले करीब एक साल से रेफ्रिजेटेर काम नहीं कर रहा है। दुनियाभर में ऐसे कई स्थान हैं, जहां यह सुविधा अभी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में कोरोना वायरस पर काबू के अभियान में बाधा आ सकती है। पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाले कोरोना वायरस के टीके को सुरक्षित रखने के लिए फैक्ट्री से लेकर सिरिंज (सुई) तक लगातार ‘कोल्ड चेन की जरूरत होगी। लेकिन विकासशील देशों में ‘कोल्ड चेन बनाने की दिशा में हुयी प्रगति के बाद भी दुनिया के 7.8 अरब लोगों में से लगभग तीन अरब लोग ऐसे हैं जिन तक कोविड-19 पर काबू पाने के लिए टीकाकरण अभियान की खातिर तापमान-नियंत्रित भंडारण नहीं है। इसका नतीजा यह होगा कि दुनिया भर के निर्धन लोग जो इस घातक वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, उन तक यह टीका सबसे अंत में पहुंच सकेगा। टीके के लिए ‘कोल्ड चेन गरीबों के खिलाफ एक और असमानता है जो अधिक भीड़ वाली स्थितियों में रहते हैं और काम करते हैं। इससे वायरस को फैलने का मौका मिलता है। ऐसे लोगों तक मेडिकल ऑक्सीजन की भी पहुंच कम होती है जो इस वायरस से संक्रमण के उपचार के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा ऐसे लोग बड़े पैमाने पर परीक्षण के लिए प्रयोगशालाओं, आपूर्ति या तकनीशियनों की कमी का भी सामना करते हैं। कोरोना वायरस टीकों के लिए ‘कोल्ड चेन बनाए रखना धनी देशों के लिए भी आसान नहीं होगा खासकर तब जबकि इसके लिए शून्य से 70 डिग्री सेल्सियस नीचे (माइनस 94 डिग्री एफ) के आसपास के तापमान की आवश्यकता होती है। बुनियादी ढांचे और शीतलन प्रौद्योगिकी के लिए पर्याप्त निवेश नहीं हुआ है जिसकी टीकों के लिए जरूरत होगी। इस महामारी को आठ महीने हो चुके हैं और विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि दुनिया के बड़े हिस्सों में प्रभावी टीकाकरण कार्यक्रम के लिए पर्याप्त प्रशीतन की कमी है। इसमें मध्य एशिया का अधिकतर हिस्सा, भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका का भी एक बड़ा हिस्सा इसमें शामिल है। बुर्किना फासो की राजधानी के पास स्थित इस क्लीनिक का रेफ्रिजेरेटर पिछले साल खराब हो गया था। यह मेडिकल केंद्र करीब 11 हजार लोगों को सेवा मुहैया कराता है। उपकरणों के खराब हो जाने के कारण इस केंद्र में टेटनस, टीबी सहित अन्य आम बीमारियों के भी टीके नहीं रखे जाते। इसका असर स्थानीय लोगों पर होता है।