पर्यावरण को बचाना और विकास कार्यों को करना भी सरकार का काम: हाईकोर्ट

नैनीताल। हाइकोर्ट ने बुधवार को राज्य सरकार द्वारा वन अधिनियम में संशोधन कर पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्र में फैले तथा 60 प्रतिशत से कम घनत्व वाले वनों को वन नहीं मानने के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा है कि पर्यावरण को बचाना और विकास कार्यों को करना भी सरकार का काम है। यदि सरकार के पास ऐसा कोई डेवलपमेंट प्लान है तो चार सप्ताह के भीतर उसे कोर्ट में पेश करे। सरकार के उक्त आदेश पर कोर्ट ने पहले ही रोक लगा रखी है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई। नैनीताल निवासी पर्यावरणविद् प्रो. अजय रावत, विनोद पांडे और रेनू पाल की ओर से उक्त बिंदु पर अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। इसमें कहा है कि 21 नवंबर 2019 को उत्तराखंड के वन एवं पर्यावरण अनुभाग ने एक आदेश जारी कर कहा है कि उत्तराखंड में जहां पांच हेक्टेयर से कम या 60 प्रतिशत से कम घनत्व वाले वन क्षेत्र हैं, उनको वनों की श्रेणी से बाहर रखा गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह आदेश एक ऑफिसियल आदेश है, यह लागू नहीं किया जा सकता है। क्योंकि न ही यह शासनादेश है और न ही यह कैबिनेट से पारित आदेश है। सरकार ने इसे अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए घुमा-फिराकर जारी किया है। याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि फॉरेस्ट कन्जर्वेशन एक्ट 1980 के अनुसार प्रदेश में 71 प्रतिशत वन क्षेत्र घोषित है, जिसमें वनों की श्रेणी को भी विभाजित किया हुआ है। लेकिन, इसके अलावा कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं, जिनको किसी भी श्रेणी में नहीं रखा गया है। याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि इन क्षेत्रों को भी वन क्षेत्र की श्रेणी शामिल किया जाए, जिससे इनके दोहन या कटान पर रोक लग सके। सुप्रीम कोर्ट ने 1996 के गोडा वर्मन बनाम केंद्र सरकार के आदेश में कहा है कि कोई भी वन क्षेत्र चाहे उसका मालिक कोई भी हो, उनको वनों की श्रेणी में रखा जाएगा। वनों का अर्थ क्षेत्रफल या घनत्व से नहीं है। विश्वभर में भी जहां 0.5 प्रतिशत क्षेत्र में पेड़ पौधे हैं या उनका घनत्व 10 प्रतिशत है, उनको भी वनों की श्रेणी में रखा गया है। सरकार के इस आदेश पर वन एवं पर्यारण भारत सरकार ने कहा था कि प्रदेश सरकार वनों की परिभाषा न बदले। उत्तराखंड में 71 प्रतिशत वन होने कारण कई नदियों व सभ्यताओं का अस्तित्व बना हुआ है। बुधवार को हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा है कि पर्यावरण को बचाना और विकास कार्यों को करना भी सरकार का काम है। यदि सरकार के पास ऐसा कोई डेवलपमेंट प्लान है तो चार सप्ताह के भीतर उसे कोर्ट में पेश करे।