
देहरादून(आरएनएस)। उत्तराखंड के परिवहन कारोबारियों ने परिवहन विभाग की नीतियों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है। सरकार पर उनके रोजगार को खत्म करने का आरोप लगाते हुए कारोबारियों ने प्रधानमंत्री को शपथ पत्र भेजने और 8 नवंबर को देहरादून में बड़ा प्रदर्शन करने की घोषणा की है। प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में भूमि ट्रैवल एजेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष भगवान सिंह पंवार और ऑल इंडिया ट्रांसपोर्ट यूनियन ऋषिकेश के गजेंद्र सिंह नेगी सहित अन्य पदाधिकारियों ने सरकार को खुली चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि परिवहन व्यवसाय, जो उत्तराखंड का सबसे बड़ा व्यवसाय है और पलायन रोकने में महत्वपूर्ण योगदान देता है, उसके लिए पिछले 25 वर्षों में कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई।
कारोबारियों ने अपनी परेशानी बताते हुए कई गंभीर आरोप लगाए और मांगे रखीं:
परिवहन आयुक्त को हटाने की मांग: पदाधिकारियों ने परिवहन सचिव, आयुक्त और प्राधिकरण अध्यक्ष जैसे तीन-तीन पदों पर एक ही अधिकारी के होने पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि अधिकारियों के पास समय की कमी है, जिससे उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है, इसलिए परिवहन आयुक्त को हटाया जाए और पृथक परिवहन मंत्री बनाया जाए।
एटीएस सेंटर पर विरोध: ऑटोमेटेड टेस्टिंग स्टेशन को प्राइवेट एजेंसी को सौंपने और अत्यधिक दूरी पर सेंटर बनाने का विरोध किया गया। उन्होंने सवाल उठाया कि जोशीमठ का कारोबारी डोईवाला कैसे आएगा, जबकि आस-पास वर्कशॉप भी नहीं हैं। उन्होंने मांग की कि हर परिवहन कार्यालय में एटीएस सेंटर बनाया जाए और हिमाचल की तरह उत्तराखंड में अभी इसे लागू न किया जाए।
टैक्स वृद्धि का विरोध: सरकार द्वारा बिना पूछे 5% टैक्स बढ़ाए जाने पर नाराजगी व्यक्त की गई। आपदा की मार झेल रहे कारोबारियों पर टैक्स का बोझ डालने को गलत ठहराया गया, क्योंकि वाहन न चलने पर भी टैक्स देना पड़ रहा है।
छह गुना फिटनेस फीस वृद्धि: फिटनेस फीस में छह गुना तक वृद्धि करने को लेकर भी तीव्र विरोध दर्ज किया गया।
डग्गामार वाहनों पर सख्ती: डग्गामार वाहनों पर सख्त कानून बनाने की मांग की गई, ताकि टैक्स चोरी कर रहे और केयर ऑफ एड्रेस पर व्यवसायिक वाहन पंजीकृत कराने वाले भाग न सकें। कारोबारियों ने सरकार को जल्द ही परिवहन नीति बनाने और उसमें उनकी सहभागिता सुनिश्चित करने की अपील की।
उन्होंने कहा कि 15 सितंबर से ऋषिकेश में धरना प्रदर्शन चल रहा है, लेकिन सरकार पत्राचार पर कोई सुनवाई नहीं कर रही है। माल वाहक वाहनों को रेलवे जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स में काम मिलना चाहिए और ओला-उबर की तर्ज पर एक ऑनलाइन सरकारी प्लेटफॉर्म बनाया जाए।



