भौतिक विकास के साथ-साथ कुछ भाषाएं आगे चल पाती हैं और कुछ नहीं : कौल

रुड़की : अगर हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों को जीवित रखना चाहते हैं तो हमें अपनी मातृभाषाओं को जीवित रखना होगा। यह सही है कि भौतिक विकास के साथ-साथ कुछ भाषाएं आगे चल पाती हैं और कुछ नहीं। मनुष्य में एक प्रवृत्ति उपनिवेशवाद की होती है। एक जाति दूसरी जाति का दमन करती है।

उस पर अपनी प्रभुता स्थापित करती है और उसके मौलिक अधिकारों का हनन करती है। जैसे कि अंग्रेजों ने भारत का किया। यह हनन सिर्फ भौतिक नहीं होता, भाषिक भी होता है। इसका उदाहरण अंग्रेजी है। यह विचार आईआईटी रुड़की में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर आयोजित एक ऑनलाइन समारोह में वरिष्ठ लेखक-पत्रकार तथा लद्दाख एवं जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष जवाहर लाल कौल ने व्यक्त किए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्थान के निदेशक प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि यह एक ऐसा दिवस है जो हम सबको आपस में जोड़ता है। उन्होंने संस्थान के छात्रों, शिक्षकों, कर्मचारियों और अधिकारियों को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की बधाई दी।

आयोजन के क्रम में पिछले दिनों आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के परिणामों की घोषणाएं प्रो. रवि कुमार, प्रो. मुकेश कुमार बरुआ तथा कुलसचिव प्रशांत गर्ग ने की। आयोजन के अंतर्गत बहुभाषी काव्यपाठ का कार्यक्रम भी हुआ।

इसमें प्रो. एविक भट्टाचार्य ने बांग्ला, महावीर सिंह ने हिंदी तथा प्रो. पीके झा ने मैथिली में काव्यपाठ किया। प्रो. अनिल कुमार गौरीशेट्टी ने संस्कृत तथा रोना बनर्जी ने बांग्ला में गीत सुनाए। कार्यक्रम का संचालन प्रो. मनोज त्रिपाठी ने किया।

धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रो. नागेंद्र कुमार ने कहा कि मातृभाषा मां समान होती है और हम सभी को अपनी मां बहुत प्रिय होती है। इसलिए जितना आदर हम अपनी मां का करते हैं, उतना ही दूसरों की मां को भी देना चाहिए।

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